छन-छन
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गर्मियों की छुट्टियाँ पड़ चुकी थीं और कई सालो बाद थोड़ी फ़ुर्सत पाकर मैंने कुछ दिन अपने गाँव में बिताने का इरादा किया | अपना सामान बाँधा और पहुँच गया 16 घंटों के सफर के बाद अपने गाँव | काफ़ी थकान हो जाने के कारण बस यही मन कर रहा था कि ज़ल्दी से बिस्तर मिले और मैं चद्दर तान के सो जाऊँ ; लेकिन हुआ बिल्कुल उल्टा | जैसे ही टैक्सी से उतर कर गाँव की पगडण्डी पर पैर रखा , ठंडी हवा और चिड़ियों की मधुर आवाज़ ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया ,चारों तरफ हरियाली , पेड़ , खेतों में लहलहाती फसलें, आम के पेड़ों पर चढ़ कर कच्ची कैरियाँ तोड़ते वो शैतान बच्चे | यही तो था प्रकृति का आनंद , जिससे मिले मुझे एक अर्सा हो गया था और जिसकी तलाश में मैं शहर से गाँव आया था | बस फिर क्या था , इन सब का मज़ा लेते और गाँव के पुराने संगी साथियों से मिलते हुए और बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लेते हुए मैं घर की तरफ बढ़ चला | घर पहुंच कर परिवार के लोगों ने बहुत आदर सत्कार दिया, कुछ ही देर में रात का अँधेरा छा गया था तो सभी लोग भोजन करके अपने सोने के इंतजाम में लग गए थे | मेरा बिस्तर एक कमरे में लगाया गया था...