छन-छन
गर्मियों की छुट्टियाँ पड़ चुकी थीं और कई सालो बाद थोड़ी फ़ुर्सत पाकर मैंने कुछ दिन अपने गाँव में बिताने का इरादा किया | अपना सामान बाँधा और पहुँच गया 16 घंटों के सफर के बाद अपने गाँव | काफ़ी थकान हो जाने के कारण बस यही मन कर रहा था कि ज़ल्दी से बिस्तर मिले और मैं चद्दर तान के सो जाऊँ ; लेकिन हुआ बिल्कुल उल्टा |
जैसे ही टैक्सी से उतर कर गाँव की पगडण्डी पर पैर रखा , ठंडी हवा और चिड़ियों की मधुर आवाज़ ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया ,चारों तरफ हरियाली , पेड़ , खेतों में लहलहाती फसलें, आम के पेड़ों पर चढ़ कर कच्ची कैरियाँ तोड़ते वो शैतान बच्चे | यही तो था प्रकृति का आनंद , जिससे मिले मुझे एक अर्सा हो गया था और जिसकी तलाश में मैं शहर से गाँव आया था | बस फिर क्या था , इन सब का मज़ा लेते और गाँव के पुराने संगी साथियों से मिलते हुए और बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लेते हुए मैं घर की तरफ बढ़ चला | घर पहुंच कर परिवार के लोगों ने बहुत आदर सत्कार दिया, कुछ ही देर में रात का अँधेरा छा गया था तो सभी लोग भोजन करके अपने सोने के इंतजाम में लग गए थे | मेरा बिस्तर एक कमरे में लगाया गया था और पंखे का इंतजाम भी कर दिया गया था , परन्तु मुझे तो गाँव के रहन-सहन का आनंद लेना था तो मैंने ज़िद करके अपना बिस्तर भी आँगन में खुले आसमान के नीचे ही लगवा लिया |
रात को अचानक मेरी नींद खुल गयी , घड़ी में समय देखा तो रात के 1 बज रहे थे सब लोग गहरी नींद में सोये हुए थे | तभी अचानक मुझे घुंघरू की आवाज़ सुनाई दी | मुझे लगा शायद माँ अब तक जाग रही है, मैंने माँ को आवाज़ दी लेकिन कोई जवाब नहीं मिला | और घुंघरुओं की आवाज़ आना भी बंद हो गयी थी मुझे लगा शायद मेरा वहम है और मैं दोबारा सो गया |
अगले दिन खूब मज़े किये गाँव घूमा , अपने खेतों को देखा , लोगों से मिला और रात को फिर रोज़ की तरह सब सोने चले | रात को फिर से 1 बजे के करीब मुझे वही घुंघरुओं की आवाज़ सुनाई दी | और आज मुझे ये मेरा वहम नहीं लगा , बल्कि मुझे थोड़ा डर लगा क्योंकि माँ तो आज मेरे सामने ही सोई थी और उनके अलावा घर में कोई महिला नहीं थी उस रात जिसने पायल पहनी हो | मैंने पास पड़ी एक छड़ी से चारपाई की टांग पर मारा और घुंघरुओं की आवाज़ बंद हो गयी | लेकिन थोड़ी ही देर बाद वो आवाज़ फिर से सुनाई दी | बड़ी मुश्किल से उस रात मैं सो पाया | अगले 3-4 दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा |मन में कई ख्याल आते थे , कहीं कोई चुड़ैल , भूत प्रेत या कोई आत्मा तो नहीं ? परन्तु मेरे घर में कोई इन बातों में विश्वास नहीं रखता | और धीरे- धीरे मेरा डर बढ़ता जा रहा था , इस बीच मैंने कई बार मन बनाया कि माँ और भाई को इस बारे में बताऊँ | लेकिन मेरी बात का शायद कोई भरोसा नहीं करेगा , यही सोच कर मैंने अपने आप को रोक लिया क्योंकि मैं एक पढ़ा लिखा , सरकारी विद्यालय में बच्चों को शिक्षा देने वाला एक अध्यापक हूँ | और अगर मैं ऐसी बातें करूँ तो कोई भरोसा ही नहीं करता |
अंत में मैंने वापस शहर जाने का फैसला किया और तुरंत अपना सामान पैक कर लिया और ट्रैन की टिकट्स भी कटवा लीं | ट्रैन शाम 7 बजे की थी , इसलिए मुझे दोपहर 1 बजे ही निकलना था क्योंकि स्टेशन घर से काफ़ी दूर था |
घर से निकलते वक़्त जब मैं माँ के पैर छूने के लिए नीचे झुका तो मुझे फिर से वही घुंघरुओं की आवाज़ सुनाई दी | मैं एक क्षण को स्तब्ध रह गया , आवाज़ घर के पीछे से आ रही थी , मैं भागता हुआ पीछे गया | और वहाँ जो मैंने देखा ,मैं हैरान रह गया , वहाँ पर एक बैल खूंटे से बँधा हुआ था जिसके गले में एक माला थी और उसमें कुछ घुंघरू बंधे हुए थे | वह बैल जब अपनी गर्दन हिलाता था तो घुघुंरु बजते थे |मैं अपनी मूर्खता पर मैं ज़ोर से ठहाके मार के हँसने लगा |
तभी भाई आया और बोला भैया स्टेशन पहुँचने में देरी होगी जल्दी चलिए | और मैंने हँसते हुए उसे गले लगा लिया और कहा," आज नहीं छोटे , कुछ दिन और रुक कर जाऊँगा | "और मैंने ख़ुशी से 10-12 दिन की छुट्टियां और बितायीं फिर शहर लौट आया | आज भी जब इस किस्से के बारे में सोचता हूँ तो पागलों की तरह हंसने लगता हूँ |
आपके साथ भी कभी न कभी ऐसा ज़रूर हुआ होगा जब आपके वहम ने आपके डर को बढ़ावा दिया हो | आशा करती हूँ ये किस्सा आपको पसंद आया हो, और आपके चेहरे पर मुस्कान लाया हो | ये किस्सा मैंने अपने अध्यापक के मुँह से विद्यालय के समय सुना था आपके साथ साझा करते हुए ख़ुशी हो रही है , शायद आपको इससे कोई सीख मिले |
Very interesting incident
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteI appreciate you…especially for your story
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