वो हारी नहीं
  
   वो हारी नहीं 
ये बात है 22 सितंबर , 2016 की ; ICAI के Orientation Course का सातवाँ दिन| रोज़ाना की तरह आज की फैकल्टी ने भी हमें ज्ञान की बातें बताई , अपने अनुभवों को हमारे साथ साझा किया |
दोपहर हो चली थी , और दोपहर के खाने की घंटी बजने ही वाली थी उससे पहले ही सी ए अर्पित अग्रवाल जी ने हमे एक टास्क दिया | उन्होंने हमें बताया की दोपहर के खाने की छुट्टी के दौरान ही हमें एक स्किट तैयार करना है | हमारी टीम ने मिलकर विषय चुना "एसिड अटैक " और खाना ख़त्म करते ही तैयारियााँ शुरू हो गयी |
स्किट परफॉर्म करने के लिए हमें केवल 2 मिनट का समय दिया गया था और इतने कम समय में एक पूरी कहानी दिखा पाना हमें एक चुनौती लग रहा था | और तब मैंने एक सुझाव दिया और कुछ स्वरचित पंक्तियों का सहारा लिया | आज वही पंक्तियाँ मैं आप सभी के साथ साझा करना चाहती हूँ , जो एक एसिड अटैक सर्वाइवर के दर्द और संघर्ष को बयां करती है |
फिर संजोए सपने कुछ वो , आज अपनी आँख में 
चल रही थी बेख़बर इक खतरे से उस राह में |
देखे थे जो चेहरे उसने खुशियों में और जश्न में ,
आज उनसे कट गयी थी वो परी उस भीड़ में | 
अपने ही चेहरे से उसको हो गयी नफ़रत सी थी ,
अपनों-परायों के बीच , खो गयी पहचान थी | 
घर का इक कोना पकड़ कर , सह गयी वो वेदना 
फिर जो लाँघी दहलीज़ उसने , बन गयी वो प्रेरणा | 
राह में काँटे  बहुत थे , थी बहुत सी बोलियाँ 
अनसुना कर सबको उसने , तोड़ दी वो बेड़ियाँ | 
ना रुकी हिम्मत ना हारी ,
बढ़ चली वो राह पर पर ;
जो दूर थे वो साथ आये , थी डगर मुश्किल मगर | 
हम एसिड अटैक सर्वाइवर्स के दर्द और दुखों का आंकलन तो नहीं कर सकते किन्तु उन्हें  बेहतर  ख़ुशनुमा माहौल ज़रूर दे सकते हैं || जहाँ उन्हें कोई घृणा की नज़रों से न देखे और सामान्य व्यक्ति की तरह ही व्यवहार किया जाए | 


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