आत्मनिर्भर भारत
  "आत्मनिर्भर" जब आप इस शब्द को सुनते हैं तो आपके मन में सबसे पहला विचार क्या
    आता है ?
यही ना , कि एक व्यक्ति जो किसी दूसरे पर निर्भर नहीं है,
    जो  अपनी जरूरतों को अपने दम पर  पूरा करता है | जी हाँ , एक आम
    इंसान आत्मनिर्भरता को केवल एक व्यक्ति विशेष के सन्दर्भ में  देखता है |
    परन्तु क्या हो अगर एक पूरा देश ही आत्मनिर्भर बन जाए ?
जी हाँ, आज हम बात
    करेंगे, आत्मनिर्भर भारत के बारे में | 
  हमारा देश भारत ,
    जहाँ भिन्न-भिन्न भाषा , धर्म , जाति  व संस्कृति के लोग एक साथ रहते हैं
    ; "मिलजुलकर" कहना शायद पूरी तरह से ठीक तो न होगा | क्योंकि ये सब बातें
    किताबी लगती हैं , जब हम आए दिन ख़बरों में सुनते और पढ़ते हैं - सांप्रदायिक
    दंगो के बारे में , जाति के आधार पर हुए भेदभाव के बारे में , महिलाओं  के
    साथ हुए अत्याचारों और जुल्मों के बारे में | ऐसी घटनाएँ कहीं न कहीं इस सत्य
    को उजागर करती हैं कि आज भी हमारे देश में जाति , लिंग, धर्म , संस्कृति के
    आधार पर भेदभाव मौजूद है | 
  अब हाल की ही ख़बर  ले लीजिये , दिल्ली के दंगो की आग पूरी तरह शांत भी
    नहीं हुई थी और बैंगलोर में भी ऐसा ही किस्सा देखने को मिला | पालघर में हुई
    साधुओं की हत्या की गुत्थी सुलझ ही नहीं पायी थी कि उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर
    में भी ऐसी ही खबर सुनने को मिली | देखा जाए तो उदाहरणों की सूचि बहुत लम्बी है
    | 
और जब हम बात करते हैं , एक आत्मनिर्भर भारत की , तो ये तभी संभव
    हो पाएगा जब देश में बदलाव आएगा |  बदलाव की आवश्यकता है , बल्कि मैं
    कहूँगी - घोर आवश्यकता है ; और वह भी ऐसा बदलाव जो ज़मीनी  स्तर से चीजों
    को बदल दे | हमारा देश अनेक संरचनाओं से मिलकर बना है , और देश का विकास तभी हो
    सकेगा , देश आत्मनिर्भर तभी बन सकेगा जब ये संरचनाएँ  एकजुट होकर हर संकट
    के समय में एक दूसरे के साथ खड़ी रहेंगी और एक दूसरे का सहारा बनेंगी
    | 
     आज जब भारत आत्मनिर्भर बनने की राह पर चल पड़ा है , तो ज़रूरत है कि
    आत्मनिर्भरता हर क्षेत्र में आए | देश को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के
    लिए हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी ने आपदा को अवसर बनाने
    का सन्देश देश को दिया |  और पूरा देश उनका समर्थन करता हुआ दिखाई दिया|
    इसी प्रकार एक सुदृढ़ और प्रभावशाली नेतृत्व में देश अग्रसर होता रहे तो वह दिन
    दूर नहीं जब हम पूर्णतः आत्मनिर्भर होंगे | परन्तु जातीय , लैंगिक अथवा धार्मिक
    भेदभाव जैसी कुरीतियां इस राह में अभी भी बाधा बनी डँटी हुई हैं , जिन्हें हराना
    मुश्किल तो अवश्य है परन्तु नामुमकिन कतई नहीं है | इतिहास देखा जाए तो बहुत से
    सुधार हुए हैं , हालात बदले हैं परन्तु अब भी कुछ कमियाँ  हैं जिन्हे
    सुधार की आवश्यकता है | 
इस सृष्टि में कुछ भी स्थायी नहीं है सिवाय
    बदलाव के |  बदलाव प्रकृति का नियम है , जिसे न कोई रोक पाया है न ही मिटा
    पाया है |  सामाजिक असमानताओं को जन्म देने वाला भी मनुष्य है और इसे
    मिटाने का अधिकार और क्षमता भी पूर्णतः मनुष्य के अंदर ही है , आवश्यकता है तो
    उन क्षमताओं को पहचानने की | जब हर वर्ग का व्यक्ति केवल एक नाम से जाना जाएगा
    , उसकी केवल एक पहचान होगी - भारतीय | और तब वह देश के विकास और तरक्की के लिए
    एकजुट होकर पूर्ण सहयोग के साथ एक राह पर चल पड़ेंगे | 
वर्तमान की
    परिस्थितियों को देखकर अनुमान लगता है कि यह सब बेहद कठिन होगा | राह कठिन
    अवश्य है किन्तु परिणाम अत्यंत लुभावने होंगे | आत्मनिर्भर भारत सभी चुनौतियों
    से लड़ेगा भी और जीतेगा भी | 
जब आँच आए इस मिट्टी पर , ये तनिक नहीं सह पाता है
जो दी जग ने इसे चुनौतियाँ , झट पूर्ण करके दिखलाता है ;
हो पाकिस्तान या हो चीन ; ये सबक उन्हें सिखलाता है
राफेल , ब्रह्मोस , विक्रमादित्य से हुंकार लगाता है
जब संकट में हो मित्र कोई , क्षण में यह हाथ बढ़ाता है ;
संस्कृति और सभ्यता के दम पर , जीवन का पाठ पढ़ाता है ;
यूँ ही नहीं मेरा भारत , विश्वगुरु कहलाता है |
दिन दूर नहीं जब विश्वगुरु , समानता की सभी सीढियाँ चढ़ जाएगा
तभी तो यह इक दिन आत्मनिर्भर भारत कहलाएगा |



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