Bachpan Ki Yade


 बचपन 



स्थान : राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय शालीमार बाग , दिल्ली -110088 
साल : 2010 

मैं उस वक़्त कक्षा दसवीं में पढ़ा करती थी | क्लास की मॉनीटर हुआ करती थी (क्लास का मॉनीटर बनना तब बहुत गर्व की बात थी | हो भी क्यों ना , आप सभी शिक्षकों की नज़र में जो रहते हो | और तो और कई बार क्लास के बच्चों पर अपनी मनमानी भी चला सकते हो, ये कह कर कि " मैं तो क्लास का मॉनीटर हूँ "| )
Poem on Childhood, Childhood memories
बचपन की यादें 

  ख़ैर , उस दिन हमारे हिंदी अध्यापक श्रीमान आलोक तिवारी जी कुछ अलग ही मूड में थे | क्लास में आते ही उन्होंने एक सरप्राइज काव्य प्रतियोगिता आयोजित कर दी | और कहा जो मन में आए लिखो , तुम्हारे विचारों की धारा जिस तरफ बहे , उसे बहने दो और फिर उसे एकत्रित करके शब्दों की माला में पिरो दो | और उस वक़्त मैंने यह कविता लिखी जो, मैं आप सभी के साथ साझा करने जा रही हूँ | आशा करती हूँ ये कविता आपके बचपन की यादों  के कुछ पन्नो को पलटने में सक्षम होगी | 



मेरी इस कविता "बचपन " की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :



 साथ रहे हम, साथ पले हम , साथ चले हर कदम-कदम 
पर अब मेरे साथ नहीं वह , जब मैंने उसे बुलाया 
अपने पीछे छोड़ गया वह अपनी यादों का साया |

माँ का प्यार मिला , पिता की डांट पड़ी 
इन सबसे जुड़ी थी उसकी कड़ी|

 उसके रहते संग  शिक्षकों और साथियों के जो किए थे नटखटपन 
आज उन्हीं की स्मृतियों को याद करे मेरा तनमन | 

 साथ रहे हम, साथ पले हम , साथ चले हर कदम-कदम | 

फूलों सा था कोमल वह , था समीर सा पावन 
मुस्कुराते , इठलाते हुए बीत गए कई सावन |

वक़्त हाथ से निकल गया , अब खेले है आँख-मिचौली 
याद आते हैं वे दिन जब हम सब थे हमजोली | 

 साथ रहे हम, साथ पले हम , साथ चले हर कदम-कदम | 

न जाने कब , कैसे और क्यों जिंदगी में यह अजीब मोड़ आया ,
बढ़कर आगे जब मैंने ,उसे साथ बुलाया ; दूर ही रहा खड़ा वह 
मेरे पास ना आया 

अपने पीछे छोड़ गया वह अपनी यादों का साया | 




बचपन की बात ही अलग थी , न कोई ज़िम्मेदारी , न कोई डर | 
आशा करती हूँ ये कविता आपको पसंद आयी हो , इस पर आपके विचारों को आप कमेंट सेक्शन में शेयर कर सकते हैं | 

Comments

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  2. मुझे मेरे बचपन में पंहुचा दिया आपने। बहुत अच्छा लिखा है। मेरी ढेरों शुभकामनायें। अगले पोस्ट का इंतजार रहेगा।

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